आधुनिक जीवन की भागदौड़, शोर, और निरंतर बदलती परिस्थितियों के बीच सत्यस्वयंभू एक शांत, आंतरिक पुकार बनकर उभरती है—वह पुकार जो हमें बाहर की दुनिया (दृश्य) से भीतर के साक्षी (द्रष्टा) की ओर ले जाती है।
भगवान श्री नरेंद्र किशोर द्वारा रचित यह पुस्तक मात्र ग्रंथ नहीं, बल्कि 132 दिव्य वचनों का ऐसा संग्रह है जो साधना, आत्मचिंतन, और जागृति का मार्ग खोलते हैं। प्रत्येक वचन पाठक को संसार की क्षणभंगुरता से परे उस स्वयं-प्रकाशित सत्य की ओर ले जाता है—जो न उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है, केवल अपने स्वभाव में विद्यमान रहता है।
इन वचनों में पाठक को एक ऐसा मार्ग मिलता है जो:
- अहंकार की सीमाओं को पिघलाता है
- मन की अस्थिरता को शांत करता है
- भीतर मौजूद शुद्ध, अकारण द्रष्टा को प्रकट करता है
- और जीवन को साधारण से असाधारण चेतना की ओर मोड़ देता है
यह पुस्तक सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं बनी—यह ध्यान का उपकरण, आत्मचिंतन का दर्पण, और जागृति का सेतु है। हर वचन एक ऐसी कुंजी है जो मन, जीवन, और अस्तित्व के गहरे ताले खोल देती है। यह पाठक को मायामय अनुभवों से उठाकर उस अविनाशी सत्य के साथ एकाकार होने की दिशा में ले जाती है, जहाँ केवल शांति, साक्षित्व, और पूर्णता का अनुभव शेष रह जाता है।
आध्यात्मिक साधना में रुचि रखने वाले, ध्यान-प्रेमी, सत्य-खोजी, और जीवन के गहन अर्थों को समझने की चाह रखने वाले हर व्यक्ति के लिए सत्यस्वयंभू एक दिव्य मार्गदर्शक सिद्ध होगी। यह पुस्तक उस अंतिम सूत्र की ओर संकेत करती है—
स्वयं को जानने का, स्वयं में स्थित होने का, स्वयं से जुड़े रहने का।
सत्यस्वयंभू केवल एक पुस्तक नहीं; यह भीतर की यात्रा का प्रारंभ है—एक ऐसी यात्रा जो आपको दृश्य से द्रष्टा, झूठे अहं से शुद्ध आत्मस्वरूप, और अस्थिरता से अडिग सत्य की ओर ले जाती है।