टेलीविज़न का जनजातीय महिलाओं पर प्रभाव (कोल जनजाति के विशेष संदर्भ में)—यह पुस्तक न केवल अकादमिक शोध का अनूठा उदाहरण है बल्कि समाज और मीडिया के पारस्परिक संबंधों को समझने का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी है। डॉ. शिव शंकर सिंह द्वारा रचित यह कृति विकास और परिवर्तन के उन पहलुओं को उजागर करती है जिन पर अक्सर मुख्यधारा का ध्यान नहीं जाता।
आधुनिक युग में संचार के साधनों ने मानव जीवन को गहराई से प्रभावित किया है। इनमें टेलीविजन एक ऐसा माध्यम है जिसने समाज के हर वर्ग तक अपनी पहुँच बनाई है। यह पुस्तक इसी प्रभाव की पड़ताल करती है, विशेषकर मध्य प्रदेश की प्राचीन कोल जनजाति की महिलाओं के जीवन पर टेलीविजन के प्रभाव को केंद्र में रखकर। कोल जनजाति, जो अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और विशिष्ट जीवनशैली के लिए जानी जाती है, धीरे-धीरे विकास और परिवर्तन की ओर अग्रसर है। इस परिवर्तन में टेलीविजन ने किस प्रकार से भूमिका निभाई है, यही इस पुस्तक का मुख्य विषय है।
पुस्तक सात अध्यायों में विभाजित है और प्रत्येक अध्याय पाठक को एक नई दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है। प्रथम अध्याय में संचार, जनसंचार और टेलीविजन से जुड़े मूलभूत सिद्धांतों का विस्तृत विवेचन किया गया है। द्वितीय अध्याय पूर्व में किए गए अध्ययनों की समीक्षा प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक को विषय की पृष्ठभूमि समझने में आसानी होती है। तृतीय अध्याय अनुसंधान प्रविधि को स्पष्ट करता है और अध्ययन क्षेत्र का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक परिचय देता है। इसके बाद के अध्यायों में कोल जनजाति की महिलाओं का ऐतिहासिक परिदृश्य, उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और टेलीविजन द्वारा आए परिवर्तन का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। विशेष रूप से छठे अध्याय में यह बताया गया है कि कैसे टेलीविजन ने महिलाओं के जीवन में नए मानक स्थापित किए हैं—चाहे वह पारिवारिक निर्णयों में सहभागिता हो, कैरियर को महत्व देने की प्रवृत्ति हो या महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए कदम।
लेखक डॉ. शिव शंकर सिंह इस विषय के गहन अध्येता हैं। उन्होंने M.Sc., M.Com., MJMC., B.Ed., एलएलबी जैसी विविध शैक्षिक योग्यताओं के साथ पत्रकारिता एवं जनसंचार में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। जनजातीय समाज और संचार के क्षेत्र में उनकी विशेष रुचि और वर्षों का अनुभव इस पुस्तक में स्पष्ट झलकता है। वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ, जिला टोंक (राजस्थान) में शिक्षण कार्य करते हुए उन्होंने अकादमिक शोध को सामाजिक सरोकारों से जोड़ा है।
यह पुस्तक न केवल शोधार्थियों और मीडिया छात्रों के लिए उपयोगी है बल्कि समाजशास्त्र, जनजातीय अध्ययन, महिला सशक्तिकरण और विकास संचार में रुचि रखने वाले सभी पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह कृति यह दर्शाती है कि किस प्रकार मीडिया समाज के सबसे दूरस्थ और पारंपरिक समुदायों तक पहुँच कर उनके जीवन को प्रभावित कर सकता है।
डॉ. शिव शंकर सिंह की यह रचना जनजातीय समाज के बदलते परिदृश्य को समझने का एक प्रामाणिक प्रयास है। टेलीविजन की शक्ति, जनजातीय जीवन की संवेदनशीलता और महिलाओं की प्रगति के बीच संतुलन खोजती यह पुस्तक निश्चित ही अकादमिक जगत में एक महत्वपूर्ण योगदान सिद्ध होगी और आने वाले शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगी।