मेघना – देविका दास द्वारा रचित उपन्यास एक महिला कलाकार के जीवन की एक यात्रा की झलक देता है, जो संघर्ष मेघना कर रही है वो अमूमन कई व्यक्तियों के जीवन का संघर्ष है । उपन्यास को पढ़ते हुए हम ऐसा महसूस करते है की मेघना कोई जाना पहचाना, आस पास का ही व्यक्तित्व है । इस व्यक्तित्व के चित्रण के लिए लेखिका प्रसंशा की पात्र है। मेघना कहानी एक मशहूर रंगमंच की कलाकार के जीवन के इर्द गिर्द घूमती है। कैसे एक साधारण परिवेश और मध्यम वर्गीय स्त्री एक सपना देखती है और उस सपने को जीते हुए कामयाब होती है, ये मेघना के जरिए लेखिका ने बहुत सुंदर ढंग से वर्णित किया है। साथ ही साथ सामाजिक और पारिवारिक स्थितियों को भी समूचे ढंग से चित्रित करते हुए, किस किस मनोस्थिति से नायिका गुजरती है वो भी बहुत ही मनोरंजक है। कहानी खुद में ऐसे बांधती है की शायद आप एक ही बार में बिना रुके ये उपन्यास पढ़ लें।
रूषांक: आपकी किताब ‘मेघना’ के लिया बहुत बहुत बधाई! इस किताब को लेकर आपको पाठकों से कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
देविका: मेघना को पाठको ने सराहा है और पसंद किया है। कई पाठको ने यह भी बताया की उन्होंने यह जाना की कलाकार भी इंसान ही है 🙂
रूषांक: आपकी एक किताब “दी माइंड गेम” भी इससे पहले प्रकाशित हो चुकी है। इस शैली (हिंदी) में लिखने का विचार कैसे आया और आपने इसी विषय को क्यों चुना?
देविका: मैं अपने लेखन शैली को प्रतिबंधित नहीं करना चाहती थी। दूसरा कारण, मैं देश के भिन्न प्रांतो में यह सन्देश पहुंचाना चाहती हूँ की हर कलाकार को पनपने और बढ़ने का हौसला मिलना चाहिए।
रूषांक: आपकी पुस्तक वास्तव में पाठकों को क्या संदेश देती है?
देविका: मैं स्वयं एक अभिनेत्री हूँ और एक कलाकार। मैं लोगों को कला का महत्व बताना चाहती थी।
रूषांक: इस किताब को लिखते समय आपके दिमाग में क्या चल रहा था और किन घटनाक्रमों को सोचते हुए आपने ये किताब लिखी?
देविका: मैंने ज़्यादा प्रयत्न नहीं किया है इस कहानी को लिखने में। मैंने बस अपनी अनुभूति के कुछ यादों को इस कहानी मई दर्शाया है।
रूषांक: इस पुस्तक को लिखने में आपको कितना समय लगा?
देविका: क्योंकि इस कहानी की लिपि हिंदी है, मैंने पहले हिंदी साहित्य का चयन किया फिर इस कहानी को लिखना आरम्भ किया। कमसकम १ साल लगा मुझे मेघना लिखने में।
रूषांक: क्या क्या चुनौतियां आपको इस किताब लिखने के दौरान महसूस हुई ?
देविका: ऐसी कोई ख़ास चुनौती नहीं आयी जिसके बारे में मैं लोगों को बता सकू।
रूषांक: आप लेखक के जीवन में आलोचना को कैसे देखती है और स्वयं इसको कैसे संभालती हैं?
देविका: कभी कभी हम एक ही काम करते हुए थक जाते है। ज़रूरी है की हम कुछ समय के लिए न लिखे ताकि हम इस थकान को दूर कर पाए और अपने लेखन को उत्साहित होकर जारी रखें।
रूषांक: पुस्तक के प्रकाशन के दौरान प्रकाशक के साथ आपका अनुभव कैसा रहा?
देविका: प्रकाशक ब्लू रोज़ पब्लिशर्स ने मेरा हर कदम पे साथ दिया ताकि एक अच्छी किताब लोगो को पढ़ने को मिले।
रूषांक: आप नवोदित लेखकों को क्या सलाह देना चाहेंगी?
देविका: मेरे जीवन में लिखने का बहुत योगदान है। लिखने के कारण मुझको शांति मिलती है। मैं नवोदित लेखकों को यह सलाह दूँगी की अपने मन को छू जाए ऐसी रचनाये लिखें और ईमानदारी से लिखे।