An Interview with – Dr. Manoj Kumar Yadav

An Interview with – Dr. Manoj Kumar Yadav

लेखक परिचय: लेखक डॉ मनोज यादव, जो एक गाँव से निकलकर लखनऊ विश्वविद्यालय जैसे सम्मानित संस्था से एम.ए., एलएल.बी. किये। केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर(छ. ग.) से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त किए। कालांतर में यूजीसी नेट की परीक्षा भी उत्तरीन किए। “डिग्री कालेज में अध्यापन का कार्य किये। विज्ञान वर्ग के छात्र रहे । सिविल सर्विस के आकर्षण व इतिहास में रुचि ने इतिहास विषय की ओर मोड़ा। छ.ग. को इतिहास के पन्नों में सम्मान दिलाने हेतु प्रतुतग्रंथ की रचना की प्रेरणा मिली । लेखक, लेखन के साथ  सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में अपनी  भूमिका की तलाश में है। प्रस्तुतग्रंथ प्रतियोगी छात्रों के साथ ही सामान्य छात्र व लाइब्रेरी हेतु उपयोगी है।

प्रश्नावली:

प्रश्न 1. आपने इस किताब को लिखने का क्या प्रेरणा स्रोत चुना और इस किताब के लिए आपके मन में कैसे विचार उत्पन्न हुए?

डॉ मनोज यादव: छ0ग0 से बचपन से लगाव रहा| बराबर आना-जाना रहा | गाँवों में गया आदिवासियों के साथ रहा है. छ0ग0 की एक अलग सांस्कृतिक विरासत है। इसमें रुचि बढ़ी। मेरी पत्नी डाॅ गीता यादव -बिलासपुर की रही उनका गाँव लगाव था। उनकी स्मृति में यह ग्रंथ हमारे सामने आयाl

प्रश्न 2. आपकी किताब में छत्तीसगढ़ के सामाजिक और राष्ट्रीय जागरूकता के इतिहास की बात की गई है। इस क्षेत्र के इतिहास को लेकर आपकी विशेष रुचि क्यों है?

डॉ मनोज यादव: छ0ग0 मुलतः आदिवासी व ग्रामीण संस्कृति से आच्छादित है। सामाजिक व धार्मिक आंदोलन जमीन पर दिखता है. वर्तमान राजनीति परिवेश मे कबीर पंथ व satnamiउच्च पद पर दिखे. हमने जनाना चाहा कि उस कालखण्ड के धार्मिक व सामाजिक आंदोलन राष्ट्रीय आन्दोलन को कितना प्रभावित किया। इस ग्रंथ में प्रभाव परिलक्षित है। क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धी विरासत विरासत, अनोखी संस्कृति और प्रेममयी जनसमुदाय में आकर्षित किया।

प्रश्न 3. किताब में आपने बस्तर के आदिवासी और उनके आन्दोलन के बारे में भी चर्चा की है। कृपया हमें इस विषय पर अधिक जानकारी दें और आपका दृष्टिकोण साझा करें।

डॉ मनोज यादव: आदिवासी जन‌जाति और आन्दोलन रुचिकर विषयवस्तु रहे। लगातार जनजागृति दिखती है। आन्दोलनों में भयावहता के साथ समझ भी दिखती है.। 1876 का अत्य और अहिंसा से मजबूत शासन को झुका देना, अशिक्षित समाज में एक अचंभित कर रे वाली परिघटना भी। यह आकर्षण अध्ययन के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 4. आपका अध्ययन किताब के बहुत ही व्यापक है। कृपया हमें इस किताब के अद्वितीय विशेषताओं के बारे में बताएं।

डॉ मनोज यादव: सामाजिक व धार्मिक आन्दोलनों ने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रभावित करते हुए अपना योगदान दिया। भूमकाल आयोजन में जहाँ अपने स्वाभिमान की लड़ाई आदिवासियों ने अपने परम्परागत हथियारों से लड़ी, वहीं 1876 में मुरीयों ने अहिंसात्मक आयोजन करके सत्यमेव जयते’ को परिभाषित किया।

प्रश्न 5. किताब में छत्तीसगढ़ के भौगोलिक पृष्ठभूमि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसका मुख्य उद्देश्य क्या था और इसका किताब में कैसे महत्व है?

डॉ मनोज यादव: कालक्रम घट्टमाएं हमें भौगोलिक स्थिति से भी अवगत करायेगी। इससे इतिहास समझने में आसानी होगी छात्रों की रुचि बढ़ेगी। प्रतियोगी छात्रों को एकत्रित सामग्री उपलब्ध हो जायेगी।छ0ग0 की भौगोलिक विरासत भी हम समझ सकेंगे।

प्रश्न 6. कृपया हमें इस किताब के लिखने के दौरान आपके अनुसंधान की प्रक्रिया के बारे में बताएं।

डॉ मनोज यादव: वाचनालय, विभिन्न शोध ग्रंथ और पत्रपत्रिकाओं ने सूक्ष्म अध्ययन में अपनी भूमिका परिभाषित किया।

प्रश्न 7. आपने इस किताब में छत्तीसगढ़ के महान विभूतियों के योगदान को उजागर किया है। कृपया कुछ ऐसे नाम बताएं जिन्होंने इस क्षेत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ मनोज यादव: 1)माखन लाल चतुर्वेदी 2)पंडित सुन्दर लाल शर्मा 3)पंडित रविशंकर शुक्ल 4)इ राघवेन्द्र राव 5)प्यारेलाल सिंह 6) गेंद सिंह 7)लाल कालेन्द्र 8) गुंडा धुर ।

प्रश्न 8. आपकी किताब में आदिवासी आन्दोलनों का भी वर्णन है। इस आन्दोलन के महत्व को समझाने के लिए आपका विचार क्या है?

डॉ मनोज यादव: छत्तीसगढ़ की पहचान ही आदिवासी सांस्कृतिक विरासत से है। आदिवासियों ने न केवल अंग्रेजों से जोश लिया बल्कि ठेकेदारी प्रथा ज़मी दारी अत्याचार और शोषण के खिलाफ मजबूत आवाज उठायी। स्वाभिमान से समझौता नहीं किया नारी अस्मिता के लिए संघर्ष किया। अशिक्षा बाधक नहीं बना. समझ अग्रसर रहा ।

प्रश्न 9. आपने अपने लेखन के साथ सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी भूमिका निभाई है। आपके अनुसार, कैसे इतिहास और समाज का ज्ञान हमारे समाज को सुधार सकता है?

डॉ मनोज यादव: परिवार, समाज, वर्ग और देश के लिए व्यक्ति को उसका इतिहास अवश्य जाननी चाहिए। गौरवमयी इतिहास सम्मानित चाहे वह परिवार को हो या देशकाल का व्यक्ति का प्रेरक तन होता है। उस इतिहाল के संरक्षण में व्यक्ति विचलित नहीं होता। समाज के समान्तर समाज हित मे कार्य करता है।

प्रश्न 10. आपकी किताब को प्रतियोगी छात्रों के लिए भी उपयोगी माना गया है। इस किताब का उद्देश्य और उपयोग क्या है प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में?

डॉ मनोज यादव: किताब में सूक्ष्म अध्ययन को जगह मिली है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य को भी परिभाषित किया गया । छःग के भौगोलिक व सांस्कृतिक विरासत को महत्व मिला है। एक जगह प्रतियोगी छात्रों को अध्ययनसामग्री उपलब्ध है। 1857 से 1920 तक इस किताब में सामग्री ।मांग पर 1920 से आगे भी बढ़ने का विचार है।

प्रश्न 11. आपके अनुसरण के आधार पर, आपके पाठक इस किताब से क्या सिख सकते हैं और कैसे इसका उपयोग अपने जीवन में कर सकते हैं?

डॉ मनोज यादव: धार्मिक व सामाजिक आन्दोलन देशकाले और उसकी घटनाओं से अलग नहीं हो सकते। धर्म समाज और शिक्षा के रुकता व्यक्ति के आंतरिक, अध्यात्मिक और समझदारी को विकसित करता है। अपने इतिहास का अनुसरण कर व्यक्ति समाज और देश हित में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सकता है।

प्रश्न 12. आपने अपने शैली के बारे में कहा है कि यह सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में आपकी भूमिका को दर्शाता है। कृपया हमें अपने लेखन की शैली के बारे में अधिक जानकारी दें।

डॉ मनोज यादव: सामाजिक व राजनीतीक क्षेत्र मे हमारा कार्य अनवरत है. लेखन भी जीवन शैली में है। कविता लेखन भी है, जो अभी अप्रकाश्य है, लेकिन, समयानुसार प्रकाशित होगा।

प्रश्न 13. आपका लेखन किताब के बारे में अधिग्रंथ में होने वाले विशेष अध्ययन के लिए कैसे अद्वितीय है? क्या आपने किताब के लेखन के दौरान किसी खास तकनीक का उपयोग किया?

डॉ मनोज यादव: हम बता चुके हैं, भौगोलिक, सामाजिक व धार्मिक आन्दोलन का राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रभाव, आदिवासी जागृति व उनकी संघर्ष-समझ , ये सभी अध्ययन को रुचिकर बनाते हैं। लेखन मे परम्परागत के साथ जन सम्पर्क भी सूत्रधार है।

प्रश्न 14. आपके अनुसरण के आधार पर, युवा पीढ़ी को छत्तीसगढ़ के इतिहास के प्रति कैसे उत्सुक होना चाहिए? उन्हें कैसे इस विषय के प्रति अधिक रुचि दिलानी चाहिए?

डॉ मनोज यादव: युवाओं को अपनी संस्कृति, इतिहास व धरोहर को समझने का अवसर है। उनकी सांस्कृतिक विरासत कितनी युद्ध है। इतिहास के पन्नों में महानतम् विभूतियाँ हैं, जिन्होंने त्याग व संघर्ष से छःग का सम्मान राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया युवा पीढ़ी उनका अनुसरण कर छः ग के विकास में अपनी भूमिका परिभाषित कर सकती है।

प्रश्न 15. आपके लिए इस किताब का लिखना कैसे एक साक्षरता और ज्ञान के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है? आपके अनुसरण के आधार पर, किताब लिखने के बाद आपके विचार और दृष्टिकोण में कैसे परिवर्तन हुआ है?

डॉ मनोज यादव: इतिहास विचारों का कार्यशाला है। इतिहास से ही हम अपने बारे में, विशक्ति हुन संस्कृति के बारे में सूचना जाते हैं, उसी से सीखते हैं, ज्ञान अभि ब्यक्त करते हैं और वैज्ञारिक पृष्ठभूमि को अग्रसर करते हैं। देश के विकास में सुदुर गाँव में रहने वाला, जंगल वासी  व पठार या पर्वतकसी का भी उतना ही  है, जितना कि महानगरी के रहने वालों प० सून्दर लाल शर्मा आदि का इतिहास में मह्त्व तो दूसरी तरफ लाल सिंह, गेंदासिंह आदि का महत्व व भूमिका कम नहीं है। विरासत सभी की है। उसका संरक्षण सबका कर्तव्य है।

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